भाषा की परिभाषा, उद्देश्य और प्रयोग २०२३

भाषा (Language) की परिभाषा

भाषा(Language) की परिभाषा भाषा वह साधन हैजिसके द्वारा मनुष्य बोलकरसुनकरलिखकर व पढ़कर अपने मन के भावों या विचारों का आदान-प्रदान करता है।

दूसरे शब्दों में- जिसके द्वारा हम अपने भावों को लिखित अथवा कथित रूप से दूसरों को समझा सके और दूसरों के भावो को समझ सके उसे भाषा कहते है। सरल शब्दों में- सामान्यतः भाषा मनुष्य की सार्थक व्यक्त वाणी को कहते है।

भाषा की परिभाषा


डॉ श्याम सुन्दरदास के अनुसार - मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुओं के विषय अपनी इच्छा और मति का आदान प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि-संकेतो का जो व्यवहार होता हैउसे भाषा कहते है।

डॉ बाबुराम सक्सेना के अनुसार- जिन ध्वनि-चिंहों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-बिनिमय करता है उसको समष्टि रूप से भाषा कहते है।

भाषा के दो रूप

1.     मौखिक भाषा

2.     लिखित भाषा

कई बार हम चौराहे पर लाल बत्ती जलने पर रुक जाते हैं , अध्यापक के मुँह पर उँगली रखने पर बच्चे शांत हो जाते हैं ,हाथ के संकेत से हम किसी परिचित को आने या जाने का संकेत कर सकते हैं। यह सांकेतिक भाषा का रूप है । इसे भाषा के रूपों में नही गिनते क्योंकि यह जरुरी नहीं कि संकेत कर्ता द्वारा किया गया उद्देश्य ही देखने वाला ग्रहण करे।

भारत की प्रमुख भाषाएँ

भारतीय संविधान में 22 भारतीय भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई हैं । ये भाषाएँ हैं- संस्कृत, हिन्दी, सिन्धी, तमिल ,तेलुगू ,मलयालम ,गुजराती ,मराठी ,पंजाबी,कोंकड़ी, कश्मीरी, उर्दू, उड़िया,  असमिया, कन्नड़, बांग्ला, नेपाली, बोडो, डोगरी, मैथिली, संथाली और मणिपुरी आदि ।

भाषा का उद्देश्य भाषा का उद्देश्य है-

संप्रेषण या विचारों का आदान-प्रदान।

भाषा के उपयोग

भाषा विचारों के आदान-प्रदान का सर्वाधिक उपयोगी साधन है। परस्पर बातचीत लेकर मानव-समाज की सभी गतिविधियों में भाषा की आवश्यकता पड़ती है। संकेतों से कही गई बात में भ्रांति की संभावना रहती हैकिन्तु भाषा के द्वारा हम अपनी बात स्पष्ट तथा निर्भ्रांत रूप में दूसरों तक पहुँचा सकते हैं।

भाषा का लिखित रूप भी कम उपयोगी नहीं। पत्रपुस्तकसमाचार-पत्र आदि का प्रयोग हम दैनिक जीवन में करते हैं। लिखित रूप में होने से पुस्तकेंदस्तावेज आदि लम्बे समय तक सुरक्षित रह सकते हैं। रामायणमहाभारत जैसे ग्रंथ तथा ऐतिहासिक शिलालेख आज तक इसलिए सुरक्षित हैं क्योंकि वे भाषा के लिखित रूप में है।

भाषा की प्रकृति

भाषा सागर की तरह सदा चलती-बहती रहती है। भाषा के अपने गुण या स्वभाव को भाषा की प्रकृति कहते हैं। हर भाषा की अपनी प्रकृतिआंतरिक गुण-अवगुण होते है। भाषा एक सामाजिक शक्ति हैजो मनुष्य को प्राप्त होती है। मनुष्य उसे अपने पूवर्जो से सीखता है और उसका विकास करता है।

यह परम्परागत और अर्जित दोनों है। जीवन्त भाषा 'बहता नीरकी तरह सदा प्रवाहित होती रहती है। भाषा के दो रूप है- कथित और लिखित। हम इसका प्रयोग कथन के द्वाराअर्थात बोलकर और लेखन के द्वारा (लिखकर) करते हैं। देश और काल के अनुसार भाषा अनेक रूपों में बँटी है।

भाषा और लिपि लिपि

शब्द का अर्थ है-'लीपनाया 'पोतनाविचारो का लीपना अथवा लिखना ही लिपि कहलाता है।

दूसरे शब्दों में- भाषा की उच्चरित/मौखिक ध्वनियों को लिखित रूप में अभिव्यक्त करने के लिए निश्चित किए गए चिह्नों या वर्णों की व्यवस्था को लिपि कहते हैं।

हिंदी और संस्कृत भाषा की लिपि देवनागरी है। अंग्रेजी भाषा की लिपि रोमन पंजाबी भाषा की लिपि गुरुमुखी और उर्दू भाषा की लिपि फारसी है। नीचे की तालिका में विश्व की कुछ भाषाओं और उनकी लिपियों के नाम दिए जा रहे हैं-

क्रम भाषा लिपियाँ

1. हिंदीसंस्कृतमराठीनेपालीबोडो : देवनागरी

2. अंग्रेजीफ्रेंचजर्मनस्पेनिशइटेलियनपोलिशमीजो : रोमन

3. पंजाबी : गुरुमुखी

4. उर्दूअरबीफारसी : फारसी

5. रूसीबुल्गेरियनचेकरोमानियन : रूसी

6. बँगला : बँगला

7. उड़िया : उड़िया

8. असमिया : असमिया

हिन्दी में लिपि चिह्न

देवनागरी के वर्णो में ग्यारह स्वर और इकतालीस व्यंजन हैं। व्यंजन के साथ स्वर का संयोग होने पर स्वर का जो रूप होता हैउसे मात्रा कहते हैंजैसे-

अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ

ा ि ी ु ू ृ े ै ो ौ

क का कि की कु कू के कै को कौ

देवनागरी लिपि

देवनागरी लिपि एक वैज्ञानिक लिपि है। 'हिन्दीऔर 'संस्कृतदेवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं। 'देवनागरीलिपि का विकास 'ब्राही लिपिसे हुआजिसका सर्वप्रथम प्रयोग गुजरात नरेश जयभट्ट के एक शिलालेख में मिलता है। 8वीं एवं 9वीं सदी में क्रमशः राष्ट्रकूट नरेशों तथा बड़ौदा के ध्रुवराज ने अपने देशों में इसका प्रयोग किया था। महाराष्ट्र में इसे 'बालबोधके नाम से संबोधित किया गया।

विद्वानों का मानना है कि ब्राह्मी लिपि से देवनागरी का विकास सीधे-सीधे नहीं हुआ हैबल्कि यह उत्तर शैली की कुटिलशारदा और प्राचीन देवनागरी के रूप में होता हुआ वर्तमान देवनागरी लिपि तक पहुँचा है। प्राचीन नागरी के दो रूप विकसित हुए- पश्चिमी तथा पूर्वी।

इन दोनों रूपों से विभिन्न लिपियों का विकास इस प्रकार हुआ-

प्राचीन देवनागरी लिपि :- पश्चिमी प्राचीन देवनागरी- गुजरातीमहाजनीराजस्थानीमहाराष्ट्रीनागरी

पूर्वी प्राचीन देवनागरी- कैथीमैथिलीनेवारीउड़ियाबँगलाअसमिया

संक्षेप में ब्राह्मी लिपि से वर्तमान देवनागरी लिपि तक के विकासक्रम को निम्नलिखित आरेख से समझा जा सकता है-

ब्राह्मी:

उत्तरी शैली- गुप्त लिपिकुटिल लिपिशारदा लिपिप्राचीन नागरी लिपि

प्राचीन नागरी लिपि:

पूर्वी नागरी- मैथलीकैथीनेवारीबँगलाअसमिया आदि।

पश्चिमी नागरी- गुजरातीराजस्थानीमहाराष्ट्रीमहाजनीनागरी या देवनागरी।

दक्षिणी शैली- देवनागरी लिपि पर तीन भाषाओं का बड़ा महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।

(i)             फारसी प्रभाव : पहले देवनागरी लिपि में जिह्वामूलीय ध्वनियों को अंकित करने के चिह्न नहीं थेजो बाद में फारसी से प्रभावित होकर विकसित हुए- क. ख. ग. ज. फ।

(ii)            (ii) बांग्ला-प्रभाव : गोल-गोल लिखने की परम्परा बांग्ला लिपि के प्रभाव के कारण शुरू हुई।

(iii)          (iii) रोमन-प्रभाव : इससे प्रभावित हो विभिन्न विराम-चिह्नोंजैसे- अल्प विरामअर्द्ध विरामप्रश्नसूचक चिह्नविस्मयसूचक चिह्नउद्धरण चिह्न एवं पूर्ण विराम में 'खड़ी पाईकी जगह 'बिन्दु' (Point) का प्रयोग होने लगा।

हिन्दी भाषा का विकास

राजस्थानी हिन्दीका विकास 'अपभ्रंशसे हुआ। 'पश्चिमी हिन्दीका विकास 'शौरसेनीसे हुआ। 'पूर्वी हिन्दीका विकास 'अर्द्धमागधीसे हुआ। 'बिहारी हिन्दीका विकास 'मागधीसे हुआ। 'पहाड़ी हिन्दीका विकास 'खससे हुआ।

Hari Mohan

नमस्कार दोस्तों। मेरा मुख्य उद्देश्य इंटरनेट के माध्यम से आप तक अधिक से अधिक ज्ञान प्रदान करवाना है

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